क्या है मृत्यु का विज्ञान?

जीवन बहुत सरल है। या यूं कहें कि विज्ञान ने जीवन को समझना आसान कर दिया है। लेकिन मृत्यु? वह अब भी एक पहेली बनी हुई है।

संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया को सहज बना चुका विज्ञान ‘डिजाइनर बच्चों’ की अवधारणा पर काम कर रहा है। यानी ऐसे बच्चे, जिनके जीन में बदलाव कर उन्हें इच्छा के मुताबिक रंग, रूप और कद दिया जा सके। और तो और उनकी बुद्धि और प्रतिभा तक को संवारा जा सके। विज्ञान का नियंत्रण जन्म के बाद भी हम पर उतना ही है, जितना जन्म से पहले।

आपकी इच्छा हो तो अपने होठों का आकार बदल लें, गंजी खोपड़ी पर बाल उगा लें और कमजोर पड़ चुके दिल को बदल लें। लेकिन उम्र की ढलान और मृत्यु की प्रक्रिया अब भी विज्ञान के नियंत्रण से बाहर है।

हालांकि विज्ञान के अनुसार, मृत्यु का अर्थ है जीवित प्राणी के शरीर की सभी जैविक प्रक्रियाओं का समाप्त हो जाना।

जैविक प्रक्रिया को दिल के धड़कने, मस्तिष्क के निर्णय लेने की क्षमता, किडनी और लीवर जैसे अंगों के सुचारु ढंग से काम करने में समझा जा सकता है। ये प्रक्रियाएं समाप्त होते ही हमारी मृत्यु हो जाती है।

लेकिन क्या हमारे शरीर में होने वाली जैविक क्रियाएं यूं ही समाप्त हो जाती हैं?

शरीर की जैविक प्रकियाएं कई कारणों से रुक सकती हैं। उम्र का ढल जाना यानी बूढ़ा हो जाना, किसी दूसरे व्यक्ति का प्राणघातक हमला, कुपोषण, बीमारी, आत्महत्या, भूख, प्यास, दुर्घटना या आघात आदि से ये प्र‌किया रुक सकती है।

मृत्यु के बाद शरीर तेजी से विघटित होता है, और कई तत्वों में टूट जाता‌ है। भारतीय दर्शन में ये संकल्पना है ही कि शरीर का ‌निर्माण पंचतत्वों से हुआ है और अंतत: उन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है।

लेकिन जीवन के दौरान शरीर का विघटन क्रमिक रूप से होता है। एक अध्ययन में ये दावा किया गया है कि जैविक प्रकिया दरअसल क्रमिक तरीके से रुकना शुरु करती है।

इसे तरंगों की चाल से समझ सकते हैं, जो एक कण से दूसरे कण में प्रवेश करते हुए आगे बढ़ती हैं। जैविक प्रक्रियाओं का रुकना एक कोशिका से दूसरे कोशिका के क्रम में आगे बढ़ता है।

लेकिन जीवन और मृत्यु के बीच सटीक सीमा रेखा क्या है? किस क्षण में जीवन मृत्यु में बदल जाता है? शरीर का वह कौन अंतिम अंग या कण है, जिसके रुकते ही जीवन रुक जाता है और मनुष्य या कोई भी जीव मृत देह में बदल जाता है, विज्ञान इस सवाल से निरंतर जूझ रहा है।

किसी भी व्यक्ति को फिलहाल एक ही स्थिति में मृत माना जाता है, वह है दिल की धड़कन का रुक जाना। जिसे हार्ट फेल कहा जाता है। इसकी कई परिस्थितियां हो सकती हैं। मसलन किडनी के फेल हो जाने से शरीर में संक्रमण फैल जाना या फिर चोट लगने से अत्यधिक खून बह जाना आदि।

दिल की धड़कन रूक जाने के बाद शरीर के एक-एक अंग ठप हो जाते हैं। यहां तक कि मस्तिष्क तक रक्त का संचार रुक जाता है और वह भी काम करना बंद कर देता है।

एक स्थिति ब्रेन डेड या म‌स्तिष्क का काम करना बंद कर देने की भी है। यह वह स्थिति होती है जिसमें मनुष्य का दिल तो धड़कता रहता है और बाकी के अंग भी काम करते हैं लेकिन मनुष्य निष्क्रिय पड़ा रहता है।

हालांकि इस बात पर अभी बहस चल रही है कि क्या ब्रेन डेड को भी मृत्यु मान लिया जाए और परिजनों की सलाह से उस व्यक्ति को  मृत्यु का अधिकार दे दिया जाए?

बहरहाल मनुष्य का शरीर एक अद्भुत मशीन है। जिसका हर पुर्जा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। लेकिन यह सवाल अभी अनुत्तरित है कि वह कौन सा तत्व है जिसे जीवन का जनक माना जाए या जीवन के न होने की वजह माना जाए।

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